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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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बालपने री बाता

ओळ्यूं

मिनख आपरौ बाळपणौ कदी नीं भूल सकै। बाळपणै री बातां जद याद करै तो उण टैम री अेक-अेक बात रो दरसाव आंख्यां रै सामणै फिल्म दांईं घूमण लागज्यै। पढाई रौ टैम याद करां तो देखां कै भींत माथै खिंच्योड़ी कोइलै री लेण कन्नै तावड़ौ आंवतांईं न्हाणै-धोणै अर खाणै-पीणै री स्पीट बध ज्यांवती। पछै कापी-किताबां संू भर्योड़ौ झोळौ कांधै पर उठा'र सुलेख लिख्योड़ी लकड़ी आळी तख्ती ले'र इस्कूल कानी तापडिय़ा हो ज्यांवता।

इस्कूल री घण्टी

इस्कूल में पैली घण्टी संू पैली पूगण रौ नेम हो। जिका टाबर इस्कूल में पैली पूग ज्यांवता, बै' बारी-बारी आपरी क्लासां री सफाई करता। भुआरी काडता। पाणी छिड़कता। कीं' टाबर इन्नै-बीन्नै खिंड्योड़ा कागज चुगता। इस्कूल नै मींदर दांईं चमका देंवता। पछै इस्कूल में गुरजी आणा सरू होंवता। गुरजी घड़ी में टैम देख'र कैंवता, '' अरै छोरौ, पैली घण्टी रौ टैम होग्यौ। घण्टी लगाद्यौ लाडी।"
गुरजी रौ आदेश सुणतांईं घणकरा सा छोरा घण्टी कानीं भाजता। बौ' बीं' संू आगै अर बौ' बीं' सूं......... दड़ाईछंट । जिकै रै हात घण्टौ लाग ज्यांवतौ, बौ' घण्टी इत्ती जोर सूं बजांवतौ, जाणै खुद री जीत रौ डंकौ बजावै अर जद तांईं कोई गुरजी उण नै धमका नीं देंता......... बौ' घण्टी बजाणौ बंद ई नीं करतौ। औ'ई हाल दूजी घण्टी रौ हो। दूजी घण्टी पछै पराथना होंवती अर पराथना पछै पढाई सरू।

गुरजी अर संगळिया

बाळपणै रै टैम रा कई गुरजी याद आवै। पूनमचंद जी, साबराम जी, हेतराम जी अर जगदीश जी। पूनमचंद जी रौ सभाव म्हानै सगळा गुरज्यां संू चोखौ लागतौ। पढाणै रै साथै-साथै बै' टाबरां रौ लाड-कोड भी घणौई करता। हेतराम जी म्हानै अंगरेजी पढांवता। बां'रौ सभाव थोड़ौ करड़ौ हो। बै' म्हानै मारता कम अर डरांवता ज्यादा हा। बै' आपरै कन्नै अेक बंदूक भी राखता। पढांतै टैम बै' कई बार कै' देंता कै याद कर लेइयौ नीं तो म्हंू गोळी का'ड द्यूंला।

 

अंगरेजी सैं' संू दौ'री

छठी कक्षा में अेक कानी तो म्हे सगळा टाबर एबीसीडी सीखता अर दूजै पासै अंगरेजी री पोथी लागती। उण टैम अंगरेजी म्हानै सगळा विषयां संूूं दौ'री लागती। जिकौ छोरौ कोई पाठ या माइना याद नीं करतौ, तो गुरजी उण नै मुर्गो बणांवता अर मुर्गो बणायां पछै कोई छोरौ जे ज्यादा'ई चीं-चपड़ करतौ तो गुरजी उण रै ऊपर दो ईंट रखवा देंता या फेर मन्नै या मेरे जिड्डै कोई छोटै छोरै नै उण रै ऊपर बैठण रो आदेश देंता।

रेड़ाराम रा दोरा

बिंयां म्हे क्लास में तीसेक जणा हा। पण सगळां रा नांव याद नीं है। राममूर्ति पाण्डर, फूसौ बिज्यारणियौ, रामेसर कुलडिय़ौ, सुलतान कुलडिय़ौ, रेड़ाराम शर्मा, मघाराम मेघवाल, कुंभाराम आद कइयां रा नांव मन्नै याद आवै। अंगरेजी आळै घण्टै में रेड़ाराम नै कई बार दोरा आ ज्यांवता। बौ' खड़्यौ-खड़्यौ ई पड़ ज्यांतौ। आंख्यां तिरमरा देंतौ। बीं' री मुठ्यां बंद हो ज्यांवती... जाड़ा जुड़ ज्यांवता अर मुं'डै संू झाग आणां सरू हौ ज्यांवता। बीं'नै दोरौ आंवताईं म्हे सगळा पढाई रौ काम छोड'र बीं'रौ दोरौ उतारण में लाग ज्यांवता। कोई बीं'रौ मुं'डौ खोलतौ तो कोई बीं'री मुठ्यां...। कोई भाज'र पाणी रौ लोटौ ल्यांवतौ अर बीं'नै पाणी प्याण री कोसिस करतौ। इन्नै घण्टौ खत्म होंवतौ अर बीनै बीं'रौ दोरौ ठीक हो ज्यांवतौ। रेड़ाराम रौ ठीक होवणौ अर गुरजी री मार संू बंचणौ.... अेक साथै दो लाभ मिलण सूं म्हां सगळां रै चे'रै माथै संतोष रा भाव साफ देख्या जा सकता। पढण में म्हे सगळा ठीक-ठाक ई हा।
कई बार कीं छोरां नै कोई पाठ-पूठ याद नीं होंवतौ तो बै' रेड़ाराम नै हांसतां कै' रेडिय़ा, आज यार थूं दोरा रौ नाटक कर द्यै तो म्हे मार सूं बंच सकां। पण रेड़ाराम ईमानदार हो, बण आपरी बीमारी नै कदी मार सूं बंचण री ढाल नीं बणाई।

काम करण रौ कोड

बाळपणै रै टैम पढाई रै साथै-साथै गुरजी री सेवा करण रौ अळगौई आनंद हो। गुरजी सारू चा' बणाणी हूंवती चा'यै रोटी। गाभा धोणा होंता चायै साफ-सफाई। सगळा टाबर काम जी लगा'र करता। उण टैम टाबरां नै गुरज्यां रौ काम करण रौ घणौ कोड हो।
काम लगाए राखता

गुरज्यां री सेवा रै साथै बा'नै सगळा छोरा आपरै डोळ सारू घणी चीजां भी ल्यार देंता। जिंयां उद्योग रै घण्टै में कोई छोरौ आपरै घर संूं दूध ल्यांवतौ, कोई लकड़ी-थेपड़ी तो कोई काकडिय़ा-मतिरिया, ग्वारफळी, सांगरी, झाड़ी बोरिया, काचर आद ल्यांवतौ। कीं' छोरा परीक्षा आळी पुराणी कोप्यां सूं लिफाफा बणांवता, कोई तकली काततौ। कैण रौ मतलब गुरजी म्हानै कोई न कोई काम लगाए राखता।
इस्कूल में जिग्यां भौत ही। इण कारण म्हे सगळा टाबर बठै क्यारियां बणा राखी ही। जिण में मौसम रै हिसाब सूं कीं न कीं बीजै राखता। फूल पौधां रै साथै-साथै गाजर, मूळी, पालक, धणिया, मेथी अर इरण्डिया भी लगांवता। क्यारी में पाणी देंवता, खोदी काडता, छोटा-मोटा पौधा लगांवता। औ काम म्हे छठै या सातुंवै घण्टै में करता।

आठुवैं घण्टै में पा'ड़ा

आठुवैं घण्टै में म्हे सगळा टाबर लेण बणा'र खड़्या हो ज्यांवता। पछै म्हे दो जणा.......... म्हूं अर राममूर्ति चाळीस तांईं पा'ड़ा बोलता। म्हारै गेलै-गेलै इस्कूल रा सगळा टाबर जोर-जोर सूं पा'ड़ा बोलता। उण टैम अेक-दो गुरजी कीं' छोरां सूं दरी, टाट पट्टी अर मेज-कुर्सी कमरां रै भीतर रखवांवता। बाकी गुरजी थोड़ा इन्नै-बीन्नै हू ज्यांवता तो कई चंट अर शरारती छोरा म्हानै कैं'वता कै अबै नौ रै पछै बा'रा रौ पा'ड़ौ सरु करद्यौ। पण म्हे अपणै आप नै आज्ञाकारी टाबरां री पंगत मांय मानता, इण कारण म्हे ईमानदारी सूं पा'ड़ा बोलता। कीं' छोरा पा'ड़ा बोलण रै साथै-साथै गुरजी कानीं निजर राखता कै बै' साढे च्यार बजतांईं छुट्टी री घण्टी रौ आदेश कर सकै। छुट्टी री घण्टी लागतांईं सगळा टाबर इस्कूल सूं भाज'र बारै निकळता।

 

गुरज्यां री सेवा

गुरज्यां सारू चा' अर रोटी-साग बणाण रै साथै-साथै म्हे उणां रा गाभा भी धोंवता। अेकाध गुरजी न्हा'र आपरौ पट्टेदार मोटौ सारौ घेरदार कच्छौ भी बठै'ई छोड देंवता। म्हे आपरै नान्है-नान्है हाथां-पगां संू गुरज्यां रा सगळा गाभा धोंवता। गुरजी री पैण्टां म्हानै ईंयां लागती जाणै म्हे टैण्ट धोवण लागर्या हां। पछै दो-तीन जणां मिल'र बारी-बारी सूं सगळा गाभा निचोड़ता, झड़कांवता अर तणी माथै सुकांवता।

बटाऊ सारू चा'

अेक दिन अेक गुरजी कन्नै कोई बटाऊ आयौ। गुरजी म्हानै दो-तीन जणां नै कैयौ- 'छोरौ.... तीन-च्यार कप चा' बणा'र ल्याऔ रै।' गुरजी रौ आदेश सुणतांईं म्हे च्यार जणा खड़्या हो'र बां'रै क्वाटर कानी चाल पड़्या। कमरै नै खोलतांईं अेक जणौ गुरजी रा डबला फिरोळण लागग्यौ। अेक जणौ चूल्हौ जगाण लागग्यौ। अर म्हूं देगची में पाणी घाल'र चूल्है माथै टेकै हो। जदी म्हारौ अेक संगळियौ बोल्यौ- अर किन्नैई पतासा खाणा है के? म्हारै पड़ूतर नै अणसुण्यौ कर'र बण दो-दो च्यार-च्यार पतासा म्हारे हाथां में थमा दिया। म्हे बिना सोचै समझे...... पतासा जरड़-जरड़ खा ग्या।
इन्नै देगची में पाणी उबळतांईं म्हूं चा-पत्ती नाख'र खांड सारू डबियौ ढूंडण लाग्यौ। कई ताळ होयगी। खांड आळौ डबियौ नीं लाद्यौ। म्हूं भाज्यौ-भाज्यौ गुरजी कन्नै जा'र होळै सी पूछ्यौ- गुरजी, खांड किस्सै डब्बै में है जी?
गुरजी बोल्या- खांड रैण दे........ लाल सै ढक्कण आळै अेक गोळ डब्बै में कीं पतासा पड़्या है......... आठ-दस पतासा नाख देई।
म्हूं चिमकतौ सो पूछ्यौ- 'पतासा !'
गुरजी जोर सूं बोल्या- 'हां- हां...पतासा....खड़्यौ आंख्यां के मटकावै.....चटकौ कर भई....बटाऊ लेट होवण लागर्या है।'
म्हूं फटाफट संगळियां कन्नै पूग्यौ अर गुरज्यां रै आदेश मुजब बा'नै बतायौ कै चा' में खांड री जिग्यां आठ-दस पतासा नाखणां है। भायला मेरी बात सुण'र धोळा होग्या। अेक जणौ समझांवतौ सौ बोल्यौ- 'दीना, थारै दुकान है यार........ चटकै सी जा'र था'रली दुकान सूं पावेक पतासा लिया।' पछै पतासां री खानापूर्ति कर'र चा' बणाई जद म्हां सगळां नै सांस आयौ।

रोटी चोपड़णी अर मांजणी

दीनुगै- आथणगै गुरज्यां सारू रोट्यां बणाणै रा मजा अळगा ही हा। गरम्यां में रोटी बणाणै रौ काम घणौ दो'रौ। सरद्यां में रोट्यां बणाणै रै साथै तपता रैं'ता अर साथै बंतळ करता। रोटी-साग बणाणै रै टैम भी म्हे सगळा आप-आप रौ काम बांट राख्यौ हो। अेक जणौ सब्जी काटतौ तो अेक जणौ आटौ ओसणतौ। अेक जणौ रोटी बेल'र तोवै माथै नाखतौ, तो अेक जणौ रोट्यां सेकतौ।
रोटी सेकण आळौ जे दो मिंट इन्नै-बीन्नै हो ज्यांवतौ तो मजाल है कोई दूजौ बीं'रै काम में दखल दे द्यै। रोटी चायै बळै अर चायै बळ'र कोइलौ होज्यै। रोटी सिक्यां पछै रोटी चोपड़ण आळौ आपरै हिसाब सूं रोटी चोपड़ै। पण रोटी-साग अर घी री सौरम अेक-दो जणां री भूख जगा देंती तो बै' भी फटाफट रोटी 'चोपड़ण' लाग ज्यांवता।
तातै कोइयै सूं घणकरी बार संगळियां रौ मुंडौ बळ ज्यांवतौ पण रोटी 'मांजण' रै काम सूं बै' कदी हेटै नीं हट्या। इण मौकै मेरा भायला अेक आधौ कोइयौ मन्नै इण डर सूं खवा देंवता कै औ' गुरज्यां रौ खास है......... कठैई बता न द्यै।

बाळपणै रा खेल

बाळपणै मांय खाण-पीण संू भी चोखौ लागतौ खेलणौ। खेलण में इत्ता रम ज्यांवता कै टैम रो पतौ भी नीं लागतौ। म्हूं छोरां साथै सतौळियौ, लुकमीचणी, मारदड़ी, कबड्डी अर कांच गोळ्यां अर कोड़्यां खेलतौ। अर छोरा-छोर्यां जद म्हे रळमिल' र खेलता तो लाला लिगतर, गट्टा अर गुड्डै-गुड्डी रै ब्याव रौ खेल खेलता। ब्याव रै मांय बींद मन्नै ई बणांवता। ब्याव में खाण-पीण सारू घणी बार साचली चीजां होंवती। जिंयां टांगर, भुजिया, बूंदी आद...तो घणी बार मिठाई रै नांव नकली चीजां सूं भी खेलता...जिंयां मींगणी री बंूद्या अर मींगणां रा रसगुल्ला अर गुलाब जामुन।
घणी बार रेत में घर-घर खेलता। पगां पर माटी भेळी करता। अर होळै-होळै बींनै हातां री थपकी संू पकौ करर झट संू पग बारै काड लेंवता........। पछै फूटरौ सौ घर बण ज्यांवतौ। घर देखर म्हे भौत ई राजी होंवता। उण टैम घर रै असवाड़ै-पसवाड़ै सगळी चीजां बणांता, जियां साळ, रसोई, न्हाणघर, बटाऊ सारू बैठक। अर जद खेत-खेत खेलता तो मौसम रै हिसाब सूं खेत बीजता। आंगळ्यां संू रेतै में नूंवां-नंूवां लीकलकोळिया करगे अळगी-अळगी फसल दरसांवता।
इस्कूल सूं छुट्टी होयां पछै घणी बार म्हे फुटबाल खेलता। फुटबाल रै साथै भाजता-भाजता खुद फुटबाल बण ज्यांवता पण खेलण सूं कदी मन नीं भर्यौ। खेलण पछै जिंयांईं म्हे घरां आंवतां तो मा पाणी रा छिंटा जरूर देंवती........अर साथै-साथै औळमौ भी कै.........सारै दिन नायकां अर चमारां रै टिगरां साथै खेलतौ रैवै.......। मा रौ औ औळमौ मन्नै घणौई माड़ौ लागतौ पण म्हूं के कर सकै हो.........म्हंू तो टाबर हो.........पण घर रौ ढांचौ इस्यौई हो अर गांम रौ ढांचौ भी इस्यौई........गांवां में जात-पांत नै कीं ज्यादाई मानता.......। पण म्हे टाबर अेक दूसरै में कदी कोई भेद नीं समझ्यौ....... म्हे सगळा टाबर अेक........अर सगळां री जात अेक.........। घर में मा पाणी रौ छिंटौ देर म्हारी भींट उतारती अर पछै मा कैं'वती कै......... लै......हात और धोले........तो म्हंू आपरा नान्हा नान्हा हाथ मा रै आगै मांड देंवतौ........मा हात धुवार म्हारी भींट उतार देंवती........ म्हंू हात धुवाणआळै टैम मन ई मन मुळकतौ........कै मा ईंयां क्यामी करै........ अर म्हंू पछै पाणी-पूणी पीर खेलण सारू जांवतौ तो बीस्यौ रौ बीस्यौ........। बैई संगळिया अर बैई खेल........।

गुरज्यां रौ डर

आजकाल रा गुरजी आपरी क्लास रै टाबरां रौ नांव नीं बता सकै। पण उण टैम रा गुरजी पूरै इस्कूल रै टाबरां रौ नांव याद राखता। बीं टैम गुरज्यां संू म्हे सगळाई टाबर डरता। पण डर रै साथै-साथै बां रौ म्हे आदरभाव भी भौत करता। क्यंूकै उण टैम रा गुरजी अेक-अेक टाबर अर बींरै परवार संू जुड़्योड़ा हा।
टाबर इस्कूल आणै में जे कोई आना कानी करतौ या पछै नीं आंवतौ तो गुरजी बीं रै घरां पूग ज्यांवता। आज रै गुरज्यां नै आपरै काम में जे सफल होवणौ है तो आनै भी कम संू कम आपरी क्लास रै टाबर रौ नांव तो याद होवणौ चइजै। ईं रै साथै बां रै परवार रौ भी ग्यान होवणौ चइजै। जदी टाबर आपरै गुरज्यां साथै मन संू जुड़ सकै।
म्हंू दूजी-तीजी मेें पढतौ जद री बात है। गरम्यां रा दिन हा। इस्कूल में आधी छुट्टी होंवतांईं म्हूं रोटी खाण सारू भाज्यौ-भाज्यौ घरां आयौ। भाजणै रै कारण मौसम रै मुजब डील माथै पसीनौ आ ग्यौ। म्हंू आपरौ कुड़तियौ उतारर मांची माथै नाख दियौ अर तावळै-तावळै रोटी खावण लागग्यौ कै कठैई मोड़ौ ना होज्यै।
घरां भाभी ही। भाईजी रौ नूंवौ-नंूवौ ब्याव होयोड़ौ हो। भाभी गाभा धोंवती-धोंवती मेरलौ कुड़तियौ केठा कद मांकर लेयगी। म्हंू रोटड़ी खांवतांईं कुड़तियौ ढंूड्यौ। इन्नै-बीन्नै देखंू-पंूछूं .....कदी किन्नैई तो कदी किन्नैई...। मन्नै दुळमच सी आण लाग्गी......म्हंू झुंझळांवतौ सो बोल्यौ.....'अरै मेरौ कुड़तियौ किन्नै गयौ.....अबै तांईं खोलर मांची माथै नाख्यौ हो.......मन्नै इस्कूल नै मोड़ौ होवण लागर्यौ है.......।
जदी कोई बोल्यौ, 'तेरी भाभी नै पूछ दिखाण.....।
म्हंू भाज्यौ-भाज्यौ भाभी कन्नै जार पूछ्यौ, 'भाभी मेरौ कुड़तियौ देख्यौ के?
'बौ है के.....? तणी कानी हात करतां थकां भाभी बोली।
म्हंू देख्यौ कै कुड़तियौ तो तणी माथै सूकण लागर्यौ है.....।
मन्नै रीस भी आई .....पण नंूवीं-नंूवीं आयोड़ी भाभी नै के कैवंू!
मेरौ चेरौ पढर भाभी मुळकती सी बोली, 'कोई और पैर ज्यावौ। इत्तौ कैर बातो आपरै काम लागगी।
अबै बींनै म्हंू के कैवंू.........दूजौ कोई चज रौ कुड़तियौ हो कोनी.... जिकौ इस्कूल पैर चल्यौ जाऊं। अेक कानी कुड़तियै आळी परेस्यानी अर दूजै पासै गुरज्यां री मार रौ डर। कोई टाबर बिना मतलब इस्कूल संू घरे रैज्यांवतौ तो बै बींरी झाम कस देंता...कूट-कूटर मंूज बणा देंता..।
म्हंू बांरी मार संू डरतौ उघाड़ौई चाल पड़्यौ इस्कूल कानी। इस्कूल में बड़तांईं गुरजी री निजर मेरै माथै पड़ी। बै मन्नै देखतांईं थोड़ा रीसां में बोल्या, अरै कुण........दीनदयाल.....!
'हां जी।
'हां जी रा बच्चा...........औ के सांग कर राख्यौ है रै.....?
'गुरजी, कुड़तियौ तो मेरी भाभी धो दियौ जी.....। म्हंू सोच्यौ कै इस्कूल नीं गयौ तो गुरजी मारैगा.....इण कारण म्हंू उघाड़ौई आ ग्यौ जी।
बै रीसां में धमकांतां बोल्या, जा.....गीलौई पैरिया.....। सरम कोनी आवै...इस्कूल में र्इंयांईं आ ग्यौ......।
म्हंू मन ई मन बोल्यौ, ईंयांईं कठै आ ग्यौ, पैंट तो पैर राखी है... पण बानै बोलर कैणै री हिम्मत नीं होई।
'खड़्यौ-खड़्यौ के सोचै...जा गीलौई पैरिया जा...। बां रीसां में कैयौ।
अर म्हंू कुड़तियौ लेण नै घर कानी भाज्यौ......।
रस्तै में कदी गुरजी माथै रीस आवैई तो कदी भाभी पर...... घरां आयौ......तणी संू कुड़तियौ उतारर पैरण लाग्यौ तो भाभी बोली, 'दीनदयाल जी.....ईंयां के करो......! कुड़तियौ गील्लौ है नीं.......!
'गील्लौ तो मन्नैई दीखै........। म्हंू कुड़तियौ पैरतौ - पैरतौ बोल्यौ, 'और के करूं तो...!
भाभी मेरै कन्नै आर बोली, 'ल्यावौ मन्नै द्यौ.......चूल्है री आंच में थोड़ौ सुकाद्यंू।
'रैणदे भाभी मन्नै मोड़ौ होवै..। म्हंू कुड़तियै रौ आखरी बटण बंद करतौ बोल्यौ।
'ईंयां के करौ....... गील्लौई पैर लियौ...! गुरजी मारैगा कोनी के...? म्हंू चूल्है री आंच में चटकैसी सुका देस्यंू। इत्तौ कैर भाभी मेरौ कुड़तियौ खोलण लागगी.......। म्हंू पत्थर री मूर्ति दांईं खड़्यौ रैयौ .....चुपचाप..। भाभी कुड़तियौ खोलर चूल्है कानी लेयगी। म्हंू भी बींरै साथै-साथै ई.....।
'चटकौ कर भाभी मोड़ौ होवै नीं.......!
'बस दो मिण्ट.....। कैर भाभी कुड़तियै नै चूल्है री आंच में सुकाण लागगी।
अर म्हंू तावळै - मोड़ै रै चक्कर में फंूकणी लेर चूल्है में फंूक मारण लागग्यौ। म्हंू सोच्यौ कै चूल्हौ ढंग संू जग ज्यै तो कुड़तियौ चटकै सूक ज्यै। चाणचकौई चूल्हौ हबड़ दणी सी जग्यौ.......। अर कुड़तियै री अेक बाजू रबड़ दांईं भेळी होयगी.....। आ देखर भाभी धोळी होयगी.......अर म्हंू भी देखतोई रैग्यौ।
भाभी कदी मुळकै.......अर कदी अफसोस करै.....। बाबोली, 'चूल्है में फंूक नीं मारता तो औ कुड़तियौ ईंयां कोनी होंवतौ......।
'तो अबै .....के पैरर जाऊं मैं?
कुड़तियै नै चोखी तरियां खोलर देखतां थकां भाभी बोली, 'अेक इलाज हो सकै.....। देखंू दिखाण..। इत्तौ कैर भाभी साळ कानी चाल पड़ी।
म्हंू चुपचाप बींरै लारै-लारै.....। मन्नै दुळमच सी आण लागगी। म्हंू बोल्यौ, 'भाभी, मन्नै मोड़ौ होण लागर्यौ है नीं...!
'अेक मिण्ट रुकौ.....।
अर बण कतरणी लेर कुड़तियै री दोनूं बाजुआं नै आधी-आधी काटर बराबर-बराबर कर दी। पछै मन्नै कुड़तियौ पकड़ांवती बोली, 'अबै ठीक है नी......?
म्हंू के कैवै हो.....। फटाईफट गळ में कुड़तियौ घालर भाज पड़्यौ इस्कूल कानी......। कै कठैई मोड़ौ होग्यौ तो गुरजी लत्ता ले ल्यैगा.....।

परलीकै सारू पैदल बीर

म्हूं जद तीसरी में पढै हो। जणां म्हारै पड़ौसी गांव परलीकै रै मिडल (आठवीं तांईं) इस्कूल में खेल कूद प्रतियोगिता होई। उण टैम जसाणै सूं म्हारै इस्कूल री टीम भी गई। म्हूं भी टीम रै साथै हो। बीं टैम बसां रा साधन कम ही हा। इण कारण म्हे सगळा जणा पूनमचंद जी गुरजी साथै परलीकै तांईं पैदल ही बीर हुग्या।
उण बगत न्यातणै में चूरमौ बांधतां थकां मा बोली- 'बेटा दीनू, परलीकै में पंडतां रै घरे आपणी बादळती गा सूं मिलर आई भलौ। अर गा रै पगां लागर आसीर्वाद लेई भलौ।

'चंगा मा। म्हूं इत्तौ कैंवती वेळा सैमती में अेक खानी आपरी नाड़ हला दी। सिंझ्या तांईं परलीकै पूग ग्या। गांव रै बारै खुली जिग्यां में इस्कूल देखर जिसौरौ होग्यौ। घर सूं बारै निकळनै रौ औ पैलौ मौकौ हो।

खेल प्रतियोगिता

दूजै दिन खेल सरू होया। बीं टैम म्हारै गांवां रौ जिलौ गंगानगर लागतौ। बठै पूरै जिलै री टीमां भेळी होई। म्हे सेमी फाइनल में भी नीं पूग सक्या। म्हारी टीम हार रौ मातम मनावै ही। सगळां रा मुंडा लस्सी पीयेड़ा सा होग्या।
दो दिन खेलकूद रै पछै रात नै 'सांस्कृतिक कार्यक्रम होयौ। उण में लगभग सगळै इस्कूलां रा टाबरां भाग लियौ। कणीं अेकल गाणौ सुणायौ तो कणीं 'ग्रुप सोंग दियौ।
म्हारै इस्कूल री बारी आई तो म्हूं मंच रै मेज नीचै खड़्यौ होर दो बिल्लियां लड़णै री अवाजां सुणाई।
बिल्लियां लड़णै री अवाज सुणर छोरां रोळौ मचायौ कै अै अवाजां तो टेपरिकाड में भर राखी है। म्हारा गुरजी पूनमचंद जी कैयौ कै टेपरिकाड में कोनी भर्योड़ी। अै अवाजां तो म्हारै इस्कूल रौ छोरौ खुद सुणार्यौ है। पण छोरा क्यांरा मानज्यै। बां जिद पकड़ली कै जे छोरौ सुणाण लागर्यौ तो बींनै सगळां रै सामणै हाजर करौ। निर्णायकां भी कैयौ कै प्रतियोगी सगळां रै सामणै आवणौ चइजै........ईंयां म्हे नीं माना। तद पूनमचंद गुरजी मन्नै दोनां हाथां सूं उठार मेज माथै खड़्यौ कर दियौ।
म्हूं इत्ता छोरां नै देखर अेकर तो संक्यौ पण पछै बिल्लियां रै लड़ण री अवाजां सुणाण लाग्यौ तो सगळा लोग जोर-जोर सूं ताळी बजार हांसण लागग्या। उण टैम ताळ्यां री गडग़ड़ाट सुणर म्हूं भी गरब मैसूस करै हो। पछै 'सांस्कृतिक कार्यक्रम रौ रिजळ्ट सुणायौ तो पतौ लाग्यौ कै म्हारौ इस्कूल दूजै नम्बर पर आयौ है। दूजै नम्बर माथै आणै सूं म्हारी टीम खुस होयगी।

बादळती गा

दिनुगै परलीकै सूं गांम जावणौ हो। पण गांम जाण सूं पैलां पंडतां रै घरां जार बादळती गा सूं भी तो मिलणौ जरूरी हो।
घर ढूंडणै में कीं देर नीं लागी। म्हूं गा संूं मिल्यौ। बींरै पगां लाग्यौ। गा री आंख्यां भरीजगी। म्हूं भी गळगळो होग्यौ। (अै लेणां लिखती टैम भी मेरौ मन भरीजग्यौ अर आंख्यां सूं आंसुड़ा बारै निकळणै री कोसिस करण लाग ग्या।) गा रै म्हूं फेरूं पगां लाग्यौ अर भर्योड़ै मन सूं बारै आण लाग्यौ तो पंडताणी काकी चा सारू मेरा न्यौह्रा भी काड्या। पण म्हूं बुझ्योड़ै मन सूं पाछौ आग्यौ।
उण टैम म्हारी टीम गांम पाछी जाण री त्यारी करै ही। मेरै पूगताईं म्हे गांम सारू पैदल ई बीर होग्या। रस्तै मांय पूनमचंद गुरजी मुळकता सा बोल्या- 'दीनदयाल........तैं इस्कूल अर गांम री इज्जत राख दी भई। मेरी खुसी में सगळा खुस हा।

मन रा रिश्ता

गांमै सगळी जात-गौत रा लोग हा। बामण, बाणियां, जाट, कुम्हार, लुहार, लखारा, कलाळ, दमामी, तेली, चमार, नायक आद। पण सगळा लोग अेक अर सगळा टाबर अेक। सगळा अेक दूजै रै दु:ख-सुख रा सीरी हा।
कोई घर में मरग हो ज्यावै तो आपसरी में सगळा मिलर बीं रौ दु:ख बंटावै। गांम में जे कोई जुवान मौत होज्यांवती तो आखै गांम तोवौ नीं चढतौ। सगळा अेक-दूजै रै मन संू जुड़्योड़ा हा। मन रै रिश्तै आगै जात-गौत कीं मायनौ नीं राखती।
लुहारां रै पत्तू काकौ, लखारां रै बगती भुआ, बाणियां रै रावतौ ताऊजी, गुरड़ा रै तिलौको काकौ, पाण्डरां रै हरद्याल मासौ, मुसलमानां रै अली-शेर काकै री जोड़ी.... कैण रौ मतलब पूरौ गांम अेक दूजै सूं रिश्तां री लड़ी में गुंथीजेड़ो हो। कोई कीं रै ब्या में जावै तो हाथ घड़ी मांगर लेज्यै। कोई कीं संू नूंई जूत्यां मांग लेज्यै तो कोई पैरण आळा नूवां गाभा। नां मांगण मैं संकौ अर देणै में झिझक। कींरै ई घरां टैम-बेटैम बटाऊ आ ज्यै तो अेक दूजै सूं तीवण, माचा बिस्तर तकात मांगण में कोई आंट कोनी।

म्हारा टाबरिया

पैली म्हंू टाबर हो। अबै म्हारै टाबर है। दो बेट्यां अर अेक बेटो। बडोड़ी बेटी ऋतुप्रिया, ईंस्यंू छोटो बेटो दुष्यन्त (घर में इणनै दीपू कैवां) अर छोटी बेटी है मानसी। ऋतु बेटी जोधपुर संू एस.टी.सी. करर आई है। बठै इणनै 'बैस्ट स्टूडेण्ट रौ अवार्ड भी मिल्यौ है। दुष्यन्त बेटो हड़मानगढ रै पुलकित इस्कूल री सीनियर क्लास में इत्ता चोखा नंबर लेर आयौ है कै इस्कूल में पैलै नंबर माथै पास होयौ है। ईंरौ बीकानेर रै इंजीनियर कॉलेज में बी.सी.ए. में दाखलो होयौ है।
अर छोटी बेटी मानसी नै हिन्दी मीडियम संू पांचवीं क्लास पास करतांईं पाछौ ई अंगरेजी मीडियम इस्कूल 'एन.पी.एस. में पांचवीं क्लास में दाखलौ करायौ है। मानसी नै पैली सरू-सरू में इण इस्कूल में दो साल तांईं पढाई करवाई। पण कीं कारण संू इन्नै हटा ली। हटांयां पछै बडोड़ा दोनूं टाबर घणी बार कै देवतां कै ......पापा, मानसी नै बीं इस्कूल संू नीं हटाणी ही। पछै अेक दिन मानसी भी मन्नै कैयौ कै 'पापा, मन्नै पाछा बीं इस्कूल में ईं लगा द्यौ नीं........। टाबरां रै साथै चालणौ भी जरूरी है। आ सोचर म्हंू मानसी नै बीं इस्कूल में दाखलौ करा दियौ।

आपरै टाबरां में आपरौ बाळपणौ

अबै म्हंू आपरै टाबरां में आपरौ बाळपणौ देखूं। टाबर के करै.....के सोचै......के-के बातां करै.......आंरी बातां नै म्हंू सुणूं.......आंरै साथै बात करूं.......समझंू.....अर समझण-सीखण री कोसिस करूं। टाबर आपां नै भौत कुछ सिखावै। जदी तो वरिष्ठ कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर कैयौ हो कै ........'टाबर पिता रौ भी पिता होवै.........।

लोकेश मेरौ भाई कोनी के?

आज दिनुगै संू ई मानसी री तबियत ठीक कोनी ही। बींनै उळ्टी-दस्त लागग्या हा। ताप भी चढर्यौ। उण नै दवाई दी पण अराम नीं आयौ। आखै दिन उण रै ताड़ाचूंटी लागी रैयी। आ कदी इन्नै पसवाड़ौ फोरै तो कदी बीन्नै। कदी सीधी लेटै तो कदी बैठी होज्यै। उदास-उदास। चुपचाप। रोटी बी कोनी खायी। मेरी तबियत भी ढीली ही। भौत तकड़ौ जुकाम लागर्यौ। नाक संू पाणी बगै हो। छींका आवै ई जकी अळगी। म्हंू भी दवाई ली।
बाप-बेटी दोनंू जणा बिस्तर माथै पड़्या हा। बीच-बीच में मेरी आंख लाग ज्यांवती। सिंझ्या होयगी। म्हंू आंख्यां झपकांवतौ सो मानसी कानी देख्यौ अर मानसी मेरै कानी। बाबोली- 'पापा, मेरौ बड्डी मम्मी (नानी) संू बात करण नै जी करै।
'आभी कराऊं। इत्तौ कैर म्हंू बिस्तर संू बैठ्यौ होर फोन पर नंबर मिलाण लागग्यौ। घण्टी जांवतांईं मानसी नै रिसीवर थमा दियौ। 'हैलौ...नमस्ते बड्डी मम्मी...मैं हंू मानसी...।
'किंयां है अे तंू ? म्हंू सुण्यौ है कै तेरी आसंग कोनी।
'हां...उळ्टी-दस्त लागग्या..बुखार भी होग्यौ।
'सरदी लाग्गी होसी...ध्यान राखे कर।
'ध्यान के राखंू...काल लोकेश (मामाजी रौ मोटोड़ो बेटो) कन्नै बैठी ही नीं। बींनै बुखार हो..जद मन्नै ई होग्यौ।
'बींरै कन्नै बैठ्यां बुखार किंयां होग्यौ ? अर तंू फेर बीं कन्नै बैठी क्यामी ही! बड्डी मम्मी औळमौ देंवतां थकां कैयौ।
'क्यंू ....... बैठूं क्यंू कोनी.........लोकेश मेरौ भाई कोनी के? भाई नै बुखार होवै तो म्हंू दूर किंयां बैठ सकंू!
गांधीजी रै पग लागग्यौ

मानसी नर्सरी क्लास में पढैई। म्हूं रोजिना री तरियां इस्कूल संू सीधौ घरां आयौ। म्हंू देख्यौ कै बैड माथै बैठी मानसी आपरौ 'होम वर्क करण लाग री है। बण मेरै कानी देख्यौ अर थोड़सीक मुळकर पाछी आपरै काम लाग्गी। म्हंू जेब संू तिनखा निकाळर बैड माथै मानसी रै कन्नै मेल दी अर कपड़ा बदळन लागग्यौ। थोड़ी ताळ पछै म्हंू मानसी कानी देख्यौ कै बींरौ अेक पग तिनखां रै यानी बां रिपियां रै लागर्यौ। म्हंू कपड़ा बदळतौ-बदळतौ बींरै कन्नै आर अचम्भौ करतौ बींनै समझांवतौ सो बोल्यौ-'बेटा देख...पीसां रै पग लागग्यौ नीं!....... मेरौ कैवण रौ भाव औ हो कै लिछमी रै पग लागग्यौ।
मानसी रिपियां कानी देख्यौ। बण आपरौ पग फटदणी सी लारनै सरका लियौ अर आपरी कोप्यां बैड माथै मेल दी। पछै रिपियां कानी देखर आपरा दोनूं कान पकड़ता थकां बोली-'ओहो! सॉरी पापाजी.........गांधीजी रै पग लागग्यौ.........सॉरी........।
मानसी रै मुंडै संू गांधीजी रौ नांव सुणतांईं म्हंू बींनै बांथां में भरली। म्हंू बींरै विच्यारां संू गद्गद् होग्यौ। मेरौ मन भरीजग्यौ अर टांड रै ढक्कण माथै लाग्योड़ी महात्मा बुद्ध, गांधीजी अर विवेकानंद जी री फोटुआं कानी देखर मानसी रौ सिर पळूंसतौ बींरा लाड करण लागग्यौ। पछै सेठ री दुकान संू बींनै टॉफ्यां ल्यार दी।

बाळ कोनी कटवाऊं

मानसी री आदत है कै बा दरपण रै सामणै खड़ी हो र खुद नै देखती रैवै। आज बा दरपण रै सामणै खड़ी है। कदी नंूवीं ड्रैस पैर र दरपण में देखै। कदी दरपण रै सामै डान्स करती-करती खुद रा एक्सन देखै। कदी बाळ सुंवारै। कदी बाळां नै अळगै-अळगै ढंग संू सैट करै। कदी अेक चोटी बणावै...कदी दो.... तो कदी बाळां नै खुल्ला राखै। पछै ड्रैस बदळै..।
'मेरी ईं ड्रैस पर बाळ ईंयां ठीक है नीं पापा?
'हंू। ........ कैर म्हंू बींरै मन री बात राखंू। पछै हातोहात बाळां री स्टाइल बदळर नाड़ झटकांवती सी मन्नै पूछ्यौ-'अबै..अब किंयां लागूं पापा...ईंयां ठीक है नीं?
जदी बींरी मम्मी बोली-'अै जट कटवाणी पड़ैगी तेरी।
'क्यंू कटवाणी पड़ैगी....! देखियौ पापा...मम्मी क्यांमी करै र्इंयां....!
'म्हंू गळत कैवंू के?...नां तो आ ढंग संू न्हावै अर नां ईं ढंग संू आपरा बाळ बाण द्यै। सारै दिन दरपण आगै खड़ी रैसी। म्हंू तो आ सोचंू कै जे आ कैणौ नीं मानै तो ईंरा बाळ कटवा द्यौ। बींरी मम्मी कैयौ।
'देखियौ पापा, मम्मी सारै दिन ईंयां क्यामी करती रैवै। म्हंू बाळ कोनी कटवाऊं नीं............मम्मी नै तो बस अेक ई बात दिखै........ बस बात-बात माथै ...........बाळ कटवाणा पड़ैगा......... बाळ कटवाणा पड़ैगा।
मम्मी-बेटी कई ताळ तांईं झट्टा पट्टी करती रैई अर म्हंू दोनां री सुणतौ रैयौ। पछै बींरी मम्मी आपरै काम लाग्गी अर मानसी मेरै कन्नै आर बोली-'पापा, मेरी अेक सहेली है रमन। बींरै इत्ता (कड़ संू नीचै तांईं हात लेजार) लाम्बा-लाम्बा बाळ है....म्हंू भी इत्ता लाम्बा बाळ राखस्यंू। पापा, मेरा बाळ कोनी कटवाओ नीं?
'कोनी कटवावां...........पण तंू तेरी मम्मी संू चोखी तरियां न्हा लेकर। ढंग संू न्हावैगी तो बाळां में कंघी भी ठीक होज्यैगी।
'ठीक है........पण मम्मी है नीं......साबण भौत लगावै पापा.........आंख्यां भर द्यै सगळी। पतौ है के थानै.......साबण संू आंख्यां में कित्ती बळत लागै.......म्हंू अबै मम्मी संू कदी कोनी न्हाऊं......मन्नै तो थे न्हवा देकरो.......या फेर म्हंू आपी न्हा ल्यूंगी.......।
'काल दीतवार है........काल आपां रावछर चालांगा......मा अर दादाजी नै मिल्यां नै घणांईं दिन होग्या........म्हंू तन्नै चटकै ई न्ह्वा द्यंूगा........साबण भी कोनी लगाऊं ........ठीक है नीं ?
'हंू.......ठीक है.......। मानसी मेरी बात संू खुस ही....... बींनै घणी तो ईं बात री खुसी ही कै दिनुगै रावछर जाणौ है.......मा अर दादाजी संू मिलणौ है........दादाजी संू मानसी भौत ई प्यार करै.......अर दादाजी भी बींरौ घणौ लाड राखै.......तो दिनुगै जरूर चालांगा नीं?
'हां......चालांगा तो।
'दिनुगै नट नां जाइयौ........। इत्तौ कैर मानसी खेलण सारू बारै चली गई।

मैं भी बाळ कटवा संू

12 मार्च 2006 रौ दिन। बार दीतवार। आज रावछर जाणै री त्यारी ही.......इण कारण म्हे सगळा चटकै ई उठग्या..। म्हंू चा पीवै हो...जदी फोन री घण्टी बाजी......... टर्न......... .टर्न.......... टर्न.........टर्न..........। म्हंू रिसिवर उठायौ........हैलो.........कुण दीनो भाई जी बोलो के?
'हां.........कुण........ बिनोद ? (रावछर संू मामै रौ बेटौ) बिनोद बोल्यौ।
'हां भाईजी..
'किंयां रै...आज दिनुगै-दिनुगै..?
'भाईजी, फुंफोजी कोनी रैया।
'के कैयौ......? मेरै शरीर में सरणाटौ सो निकळग्यौ।
'फुंफोजी कोनी रैया भाईजी। थे सगळा कलोनी पूगो।
मुंडै संू कई ताळ तांईं कोई बोल नीं नीकळ्यौ। म्हंू सैंतरो-बैंतरो होग्यौ। पछै म्हंू अचंभौ करतै पूछ्यौ-'ईंयां के बात होगी रै...?
'हार्ट फेल होग्यौ भाईजी।
जोड़ायत पूछ्यौ-'कांईं होयौ?
'पिताजी कोनी रैया!
'के कैयौ! बण भी अचंभौ कर्यौ।
'भौत माड़ी होई कमलेश.......अबै के करां ?.......मन्नै तो पिताजी संू मिल्यै नै ई भौत दिन होग्या हा.........आके होई........। पिताजी री अेक-अेक बात दिमाक में घूमण लाग्गी। बटी भौत माड़ी होई आतौ..........। पिताजी तो अैन ठीक हा.........चाणचकी ईंयां किंयां होई..........अब के करां.......?
'करणौ के है........टाबरां आगै जिक्र ना करियौ.........आपां फटाफट रावछर चालां।
टाबरां नै उठाया......पाणी ढोळ्यौ.......अर रावछर पूगग्या।
पिताजी नै आंगणै में लिटा राख्या। गोरौ रंग.......फूटरौ शरीर....... ईंयां लाग्यौ जाणै आभी सोया है........मन कर्यौ कै आनै फंफेड़र उठाऊं........पण घर रै रोआ-कूकै में म्हंू कद सामल होग्यौ.......पतौ ई नीं लाग्यौ........। घर में अफरा तफरी सी मच री........ईंयां लागै जाणै आज सगळा नै ईं काम है.........कोई रोवै........कोई कींनैईं बुचकारै........कोई कींनैई धीरज बंधावंतौ-बंधावतौ खुद ई रोवै.........घर में मौत रौ औ पैलौ तांडव देख्यौ.......। समझ नीं आवै कै अबै के करां........।
भाई-बंध अर रिश्तेदार ढूकण लागग्या.........ले ज्याण री त्यारी होवण लागरी........अर इन्नै संस्कृति रै मुजब मुंडन संस्कार री रस्म होवण लागरी........।
मानसी मेरै कन्नै आर बैठगी। म्हंू बाळ कटवाण लागर्यौ हो..........। मानसी मेरै कांधै माथै हाथ मेलर भर्योड़ै मन संू होळै सी बोली-'पापा, मैं भी बाळ कटवा संू.......।
'ना बेटा, बेटियां बाळ कोनी कटवाए करै।
'किणनै ईं के पतौ लागै........म्हंू गाभा भी तो छोरां आळा पैर राख्या है। सगळा सोचैगा कै औ छोरौ ई है।
'नहीं........जा बारै खेल।
बा फेर बोली-'पापा प्ली•ा.......बाळ कटवा द्यौ नीं........ म्हंू भी दादाजी नै कित्तौ प्यार करती।
मानसी नै म्हंू प्यार संू समझायौ........देख बेटा.......किणनै ई पतौ लागग्यौ कै बेटी बाळ कटवा लिया तो लोग के कैसी! सगळा मन्नै कैवैगा..। बाभौत मुस्कल संू मानी अर गळगळी सी होर बारै चली गई।
म्हंू सोचण लाग्यौ कै जकी छोरी बाळां नै काटण रौ कैवतांईं गळै पड़ ज्यावंती..बा आज दादाजी रै लारै आपरा सगळा बाळ कटवाण नै त्यार है...। दादाजी सारू मानसी री श्रद्धा अर प्यार देखर म्हंू भी भीतर ई भीतर गळगळौ होग्यौ अर मेरी आंख्यां भरीजगी।

दादाजी री लाडली
आज मानसी री फेर तबियत खराब ही। बा बिस्तर माथै जागती सूती। जदी फोन री घण्टी बाजी। म्हंू रिसिवर उठार कान रै लगायौ। रिसिवर में अवाज आई.......... 'हैलौ.......कुण बोलौ? मानसी री बड्डी मम्मी (नानी) बोली।
'मैं बोलूं.........दीनदयाल। नमस्ते मम्मी जी।
'खुस रैयौ......मानसी री तबियत किंयां है अबै?
'ठीक ई है........बात कराऊं.......?
'कराद्यौ.......। अर रिसिवर म्हंू मानसी रै हात में थमा दियौ। मानसी आपरी बड्डी मम्मी संू ....हां-हंू.....में थोड़सीक ताळ बात करी अर बातां करर बिस्तर माथै आयगी अर चुपचाप लेटगी। 'बड्डी मम्मी संू बात करली के मानसी ? म्हंू पूछ्यौ।
बा होळै सी बोली-'हंू...करली।
'अब किंयां है तेरी तबियत ?
'ठीक हंू। कैर मानसी छात कानी तकाण लागगी।
'के सोचै अे ?
'कीं कोनी।
'कींन कीं सोचै तो है।
'थानै किंयां ठा लाग्यौ ?
'बस लागग्यौ।
'तो बताऔ म्हंू के सोचै ही ?
'ईंयां किंयां बता सकूं ...म्हंू कोई भगवान हंू...!
'तो म्हंू बताऊं.....कै के सोचै ही ?
'बता।
'म्हंू आ सोचै ही कै पापा नै सगळां संू ज्यादा प्यार करूं। दुनिया सूं भी ज्यादा। मेरै संू भी ज्यादा। भगवान संू भी ज्यादा।
'रैण दे...भगवान संू भी ज्यादा...उहं..। कैर म्हंू नाड़ झटक दी।
'साची पापा...मजाक ना समझियौ।
'म्हंू भी तो तन्नै घणोई प्यार करूं।
'पैली म्हंू इत्तौ प्यार दादाजी नै करती.....। मानसी घणी उदास होर बोली। 'पैलौ नम्बर दादाजी रौ.....दूजौ थारौ....तीजौ मम्मी रौ...चौथौ दीदी रौ...अर पांचुवौं नम्बर भैयै रौ....। दादाजी नै म्हंू सगळां संू ज्यादा प्यार करती। मानसी छात कानी देखतां थकां उदास होंवती सी बोली।

सगळां संू घणौ प्यार थां संू

बींरी उदासी और बधगी। बाभर्योड़ै गळै संू बोली-'बै तो गुजर ग्या...अबै म्हंू सगळां संू ज्यादा प्यार थां संू करूं। कैर आपरै नान्है - नान्है हाथां नै मेरै मुंडै माथै फिरांवतां थकां मेरा लाड करण लाग्गी।
अेकर तो म्हंू कैवणआळौ हो कै थंू जिण संू घणौ प्यार करै बौ इण दुनिया में नीं रैवै। भगवान नै प्यारौ होज्यै...। जदी तो दादाजी गुजर ग्या...। पण म्हंू कैयौ कोनी। आ दु:खी होसी....। म्हंू मन मांय सोचर ई रैग्यौ।

मानसी रौ कुत्तौ

अेक दिन दोपारै घर रै आगै अेक कुत्तौ आयौ। सालेक को हौ........रंग में काळौ अर शरीर में पतलौ सो.......भगवान जाणै कोई बींनै छोडग्यौ कै बौ आपरी मरजी संू आयौ........म्हे बींनै देख्यौ........तो म्हानै देखतांईं बौ आपरी पंूछ हलाण लागग्यौ........म्हंू बींनै रोटी घाली.........बौ चपर-चपर खा ग्यौ। ईंयां लागै हो जाणै बौ दो-दिनां संू भूखौ हो..........रोटी खार बण पूंछ हला-हलार म्हानै धन्यवाद दियौ.........पछै बौ पूंछ हलावंतौ-हलावंतौ घर रै आगै ई बैठग्यौ।
म्हंू घर संू जद कदी बारै जांवतौ या फेर घरां आंवतौ तो बौ आपरी पूंछ हलार आपरौ प्रेम जतावंतौ.........बींरौ सुभाव देखर म्हे बींरौ नामकरण भी कर दियौ........अर नाम राख्यौ काळू.........। अब म्हे सगळा बींनै रोटी सारू काळू-काळू कैर हेलौ मारता तो बौ पूंछ हलांवतौ-हलांवतौ म्हारा किलोळिया करतौ........कदी आपरा आगला पग म्हारी छाती माथै राख देंवतौ........तो कदी पगां में लिट ज्यांवतौ.........म्हंू बींनै मिट्ठी धमकी देंवतौ..........पण बौ चोखी तरियां समझै औ कै म्हंू बींनै कीं नीं कैवंूला। बस बौ आपरी पंूछ हलार प्यार दिखांवतौ।
काळू अब सगळां रौ लाडलौ होग्यौ। पण मानसी नै बौ संैसंू बेसी आछौ लागतौ। मानसी पूरै मौलै में डंूडी पीट दी कै बां अेक कुत्तौ पाळ्यौ है अर बींरौ नांम काळू है........दिन रात अबै काळू घर रै आगै ई बैठ्यौ रैतौ। मौलै आळा नै ई पतौ लागग्यौ कै औ कुत्तौ मानसी रौ है। काळू धीरै-धीरै मौलै में सगळां संू घुळमिल ग्यौ। मानसी दिनुगै - आथणगै जद भी रोटी खांवती.........काळू नै रोटी देवणौ नीं भूलती.........। बींनै रोटी ख्वायां पछै खुद रोटी खांवती.........।

काळू सारू सुवाटर

बरस 2006 री बात है। अेक दिन सिंझ्या रै टैम म्हंू बजार संू आयौ........तो देख्यौ कै मानसी घर रै आगै खड़ी काळू कुत्तै नै रोटी नाखै ई। मन्नै देखर काळू रोटी खांवतै-खांवतै ई पूंछ हलाई। म्हंू भी बींनै लाड संू बुचकार्यौ........अर इस्कूटर घर रै भीतर राखण लाग्यौ। मानसी मेरै लेरै-लेरै आर होळै सी बोली-'पापा, आज पाळौ कित्तौ घणौ है।
'पाळै में ध्यान राखे कर बेटा। म्हंू कैयौ
'म्हंू तो ध्यान राखंू........। पछै बाभर्योड़ै गळै स्यंू बोली-'पापा, ईं काळू नै पाळौ कोनी लागै के?
'पाळौ तो सबनै ई लागै बेटा....।
'तो इण रौ ध्यान कुण राखसी? इणनै गाभा कुण परावैगौ...। पापा, मेरली सुवाटर इन्नै पराद्यौ नीं।
'वा अे बावळी.........काळू नै सुवाटर पराद्यां........लोग कै कैवैगा........कै मास्टरजी रौ दिमाक खराब होग्यौ दिसै.......। आपणै माथै सगळा हांसैगा बेटा।
'तो.......? मानसी तो कैर रोण लाग्गी।
'वा अे मानसी बेटा........ईंयां रोअे करै के? देख मेरी बात सुण........कुत्तै रै शरीर माथै कित्ता बाळ है..आपणै ईंयां है के?
'नां भी। बण नाड़ हलार कैयौ।
'जिनावरां नै भगवान शक्ति दे राखी है........आपांनै जिंयां पाळौ लागै........बियां आनै कोनी लागै बेटा........। सैर में कित्ता जिनावर है ......... गा, गोधा, कुत्ता, सूरड़ा........अै सगळा कोई गाभा थोड़ा ई पैरै........!
'पापा, इणनै मांय घर रै भीतर लेल्यौ........।
'घर रै मांय.........?
'हां.......।
'घर में औ कठै बैठसी.........? गेलरी में तो इस्कूटर है........। तूं बता........कठै रैसी? तेरी मम्मी इण नै घर में राख लेसी के? तंू ईंरी इत्ती चिंत्या ना कर। आपां रात नै सोंवती टैम ईंरै माथै कोई बोरी या खाइयौ नाख देस्यां........। ठीक है नीं? पछै गळी रा बाकि कुत्ता भी तो है.........बांनै.........? अर मानसी पछै मानगी।

ध्यान तो बंटै

मार्च 2006 री बात है। 'मम्मी रोटी बणा ली के? मानसी अेक दिन आथणगै सी पूछ्यौ।
'बणास्यां। बींरी मम्मी कैयौ।
मानसी रिणकती सी बोली-'चटकै बणा ले नीं........भूख लागरी है।
'घणी भूख लागरी है तो छाबै में देख ले........पड़ी होसी........।
'ताती कोनी बणा सकै......... ठण्डी खाऊं के!
'मुंडै संू काडै पछै अेक मिण्ट नीं रुकै.........। रोटी बणण में टैम तो लाग ई सी। सब्जी बणैगी.........पछै रोटी बणैगी........। थोड़ी थ्यावस भी राखले........।
'कित्ती देर होयगी तो..........थ्यावस कितीक राखूं!
'बणाऊं...........म्हंू टी.वी. देखंू जद लागै तन्नै भूख.......। इत्तौ कैंवता बीं री मम्मी रसोई कानी चाल पड़ी।
थोड़सीक ताळ पछै मानसी देख्यौ कै मम्मी सब्जी बंदारण लागरी है। तो बा होळै सी गिड़गिड़ावंती सी बोली-'मम्मी........... रोटी बणै इत्तै कोई चॉकलेट या टॉफी देदे........।
'क्यंू ........टॉफी संू पेट भरीजै के?
'पेट तो कोनी भरीजै..........पण अेकर ध्यान तो बंटै नीं!

 

मन तो भरै

अेकर मानसी मेरै कन्नै आर बोली, 'पापा, दस रिपिया द्यौ नीं........म्हंू झूला लेर आऊं........।
'झूलां सारू दस रिपिया.........!
'क्यंू..........पीसा तो लाग ई सी........मुफ्त में थोड़ा ई मिलै..........!
'अर तो रोज-रोज के झूला लेवै............काल पांच रिपिया लेयगी.........परस्यंू भी तैं झूला लिया...........अेकर पैली लेयगी...........ईंयां रोज-रोज के झूला...झूलां संू के पेट भरै.......!
'पेट तो कोनी भरै...........पर मन तो भरै नीं।
मानसी रौ जवाब सुणर मेरौ हात जेब कानी चल्यौ गयौ।

पंखौ तो कोनी

बरस 2007 जनवरी मीनै री बात है। हड़मानगढ में म्हारौ अेक भायलौ है...........विनीत बिश्नोई..........बै टाबरां नै जूडो सिखावै...........भौत मेनत करै...छोरा अर छोरियां नेशनल तांईं खेलियाया..............। बां मन्नै कैयौ कै............'दीनदयाल जी, म्हारा टाबरां नै अेकर देखण तो आइयौ..........म्हारौ काम देखौ.........थानै भौत बधिया लागसी।
म्हंू पूग्यौ............। मेरै साथै मानसी भी ही...........।
राजीव स्टेडियम रै कन्नै अेक जिग्यां...हॉल तरियां बड्डौ सारौ कमरौ...........बीस-पच्चीस टाबर.........जूडै रौ अभ्यास करै.........। म्हानै घणी खुसी होई..........मानसी भी देखर राजी होई..........।
म्हंू टाबरां नै बांरा नांम पूछ्या..........बांरी उपलब्ध्यां पूछी........। बांनै कवितावां अर चुटकला सुणाया.........टाबर भी ताळी मार-मारगे घणाई हांस्या.........।
मानसी भी टाबरां कानी देखै ही...........। बाभी टाबरां संू मिलर घणी राजी ही। पछै चाणचकी होळै सी बोली, 'देखियौ पापा, अठै पंखौ तो अेक ई कोनी! म्हंू देख्यौ कै बीं हॉलनुमा कमरै में पंखौ लगाण सारू जिग्यां भी कोनी ही। मानसी री दीठ मन्नै उण टैम घणी मन भायी। क्यंू कै ठण्ड रै मीनै में बण आगै गरमी में आवणआळी दिक्कत सारू पैली ई सोच लियौ।

म्हारी किताब में लिख्योड़ौ है
बरस 2007 री बात है। मानसी री आदत है कै बा बातां रै बिचाळै घणी ई बार बडेरां आळै तरियां बात करण लाग ज्यै। अर जे कोई पूछै कै ..........मानसी तैं आ बात ईंयां किंयां केई अे.........?
तो बा आपरी किताब रौ उदाहरण देवै। कै म्हारी फलाणी किताब रै फलाणै पाठ में लिख्योड़ौ है।
अेक दिन म्हे घरै बैठ्या सगळा बातां लाग रैया हा..........म्हारी बातां सुणती-सुणती बा चाणचकी बोली-'सज्जन लोग आपरी बडाई खुद कोनी करे करै नीं..........।
बीं रौ ईंयां बीच में बोलणौ मन्नै थोड़सोक अखर्यौ। म्हूं बोल्यौ-'मानसी.......तन्नै केठा अे......... कै सज्जन लोग आपरी बडाई खुद कोनी करै......?
'मेरी हिन्दी री किताब रै तेरुंवै पाठ में लिख्योड़ौ है पापा। मानसी सैजता संू बोली।
'तेरी हिन्दी री किताब लेर आ..........जा। म्हंू कैयौ।
पांचेक मिण्ट में बा किताब लेर आई..........अर किताब रौ तेरुंवों पाठ काडर मन्नै दिखांवती बोली-'औ देखौ पापा........म्हंू गळत थोड़ै ई कैवंू!
पछै मेरी सिकल देखण आळी ही।

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